गॉडफादर निर्देशक रहे प्रशसंक
सत्यजीत रे से प्रभावित आज भी बॉलीवुड के कई निर्देशक हैं और हॉलीवुड के तमाम डायरेक्टर भी उनकी प्रतिभा को सलाम करते हैं। ‘द गॉडफादर’ जैसी फिल्मों के डायरेक्टर फ्रांसिस फॉर्ड कोपोला सत्यजीत रे के फैन थे। उन जैसे हॉलीवुड निर्देशक का कहना था कि वह भारतीय फिल्मों को सत्यजीत रे के चलते ही जानते हैं। वहीं तमाम निर्देशक और स्टार हुए जो रे की फिल्मों और दृष्टिकोण से प्रभावित रहे।

सत्यजीत रे कोई ड्रामा स्कूल नहीं गए और न ही निर्देशक बनने की ट्रेनिंग ली
गरीब परिवार और सामान्य सपने देखने वाले सत्यजीत रे भी थे। जिन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह सिनेमा जैसे क्षेत्र में आएंगे और इसे आधुनिकता के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलवाएंगे। रे तो पढ़ाई करने के बाद ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर काम कर रहे थे। लेकिन वह एक निर्देशक ही नहीं बल्कि कहानीकार, लेखक और उनकी बाल मनोविज्ञान पर जबरदस्त पकड़ थी। उनका अलग दृष्टिकोण और समझ ही उन्हें इस स्तर पर लेकर आई।

ऐसे बनाई पहली फिल्म
साल 1950 में सत्यजीत रे और पत्नी के साथ लंदन जाने का मौका मिला। वह एक ऐड कंपनी के चलते न्यूयॉर्क पहुंचे थे। कंपनी के अधिकारियों ने सोचा था कि वह जब लौटेंगे तो ढेरों अनुभव और कंपनी के लिए मन लगाकर काम कर पाएंगे।
लेकिन लंदन पहुंच कर सत्यजीत रे का ध्यान की उचट गया। यहां उन्होंने जमकर अमेरिकी फिल्में देखी। उनपर विट्टोरियो डी सीका की फिल्म’ ‘बाइसिकिल थीव्ज’ ने खास प्रभाव डाला। यहां से लौटते वक्त सत्यजीत रे ने पाथेर पांचाली बनाने का ठान लिया था। उन्होंने पूरी रूपरेखा आदि तैयार कर ली थी।

पाथेर पंचाली फिल्म का निर्माण
लंदन से लौटकर साल 1952 में सत्यजीत रे ने ‘पाथेर पंचाली’ बनाने का फैसला किया। निर्णय खुद का था तो पैसा भी खुद को लगाना था लेकिन एक वक्त आया कि रे के पास पैसा नहीं था और ये फिल्म अटक गई। ये उनकी पहली फिल्म थी और किसी को विश्वास नहीं था इसीलिए कोई पैसा लगाना नहीं चाहता था।
कुछ ने मदद देने के लिए हामी तो भरी लेकिन वह फिल्म में बदलाव करना चाहते थे जिसके लिए रे बिल्कुल तैयार नहीं थे। आखिर में रे ने पश्चिम बंगाल की सरकार से मदद मांगी। 3 साल बाद ये फिल्म साल 1955 में रिलीज हुई। इस फिल्म को देखने के लिए महीनों तक कलकत्ता थिएटर हाउसफुल रहे। फिल्म को राष्ट्रीय छोड़ो तमाम अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मिले। इस फिल्म का कमाल आज तक है।

जापान के निर्देशक ने तो ये तक कह दिया था
एक पेज और एक आर्टिकल में सत्यजीत के अनुभवों, उनके प्रतिभा, उनकी शैली, उनकी कहानी, उनकी सम्मान को समेटना नामुमकिन है। लेकिन तमाम दिग्गज उनकी प्रतिभा को समझ चुके थे। जापान के फिल्मकार अकीरा कुरासोवा ने तो कहा था कि अगर आपने सत्यजीत रे की फिल्में नहीं देखी तो मतलब आपने चांद सूरज नहीं देखे। मतलब किसी की प्रशंसा इससे ऊपर तो क्या ही हो सकती थी। इस वाक्य के बाद उनके बारे में कहने को कुछ नहीं रह जाता है।

ऑस्कर लेने नहीं जा पाए थे रे
सत्यजीत रे की तमाम फिल्मों का योगदान भारतीय और विश्व सिनेमा में रहा है। महानगर, पाथेर पंचाली, शतरंज के खिलाड़ी, चारुलता, देवी, अपु ट्रिलजी जैसी फिल्मों का निर्माण किया। इनमें से कोई भी फिल्म ऑस्कर के लिए नामित नहीं हुई। किसी फिल्म को गरीबी दिखाई गई है ये कहकर नकार दिया गया तो किसी में कुछ। लेकिन ऑस्कर अवॉर्ड तो उन्हें मिला। पहले और अकेले ऐसे भारतीय हैं जिन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट ऑस्कर से नवाजा गया था। हालांकि वह बीमारी के चलते इसे लेने नहीं जा पाए थे।

इसमें भी निपुण
भारत रत्न से सम्मानित सत्यजीत रे कैलीग्राफी में भी माहिर थे। उन्हें इसके लिए भी इंटरनेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। तमाम प्रतिभाओं से निपुण रे का निधन 23 अप्रैल 1992 में हो गया।